आदिवासी भाषा और उनकी लुप्त होती पहचान लेखक: Adiwasiawaz परिचय: भाषा ही असली पहचान आदिवासी समाज की असली ताकत उसकी भाषा , संस्कृति और लोकज्ञान में बसती है। हर आदिवासी भाषा अपने भीतर एक इतिहास, एक दर्शन और प्रकृति से जुड़ा जीवनशैली समेटे हुए होती है। लेकिन आज के तेज़ी से बदलते दौर में ये भाषाएं और इनके बोलने वाले दोनों गायब होते जा रहे हैं । भारत में कितनी आदिवासी भाषाएं हैं? भारत में करीब 700 से अधिक जनजातियां हैं और लगभग 200 से ज़्यादा आदिवासी भाषाएं बोली जाती हैं। कुछ प्रमुख भाषाएं हैं: संथाली, मुंडारी, हो, कुड़ुख, गोंडी, खड़िया, भीली आदि। संथाली: पहली अनुसूचित जनजातीय भाषा जो संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल हुई यह एक गौरव की बात है लेकिन बाकी भाषाएं आज भी राजकीय मान्यता लुप्त होने के कारण शिक्षा और प्रशासन में हिंदी/अंग्रेज़ी का बोलबाला: आदिवासी बच्चे स्कूल में अपनी मातृभाषा में नहीं पढ़ पाते। शहरीकरण और पलायन: गांव छोड़कर शहरों में बसने से नई पीढ़ी अपनी भाषा भूल रही है। भाषा का शर्म के रूप में देखना: बहुत से युवा अपनी भाषा बोलने में हिचकिचाते है...
Adiwasiawaj ek abhiyan for social justice and tribal empowerment