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Government Sports Schemes for Adivasi Youth: Reality vs Claim (सरकारी खेल योजनाएँ और आदिवासी युवा: दावा बनाम ज़मीनी हकीकत)

आदिवासी और अपने अस्तित्व की पहचान का संघर्ष

🌿 आदिवासी और अपने अस्तित्व की पहचान का संघर्ष Adivasis and the Struggle for Identity & Existence भारत के आदिवासी समुदाय केवल जनसंख्या का हिस्सा नहीं हैं, वे एक संस्कृति, एक परंपरा और एक आत्मा हैं जो जंगल, ज़मीन और भाषा से गहराई से जुड़ी है। Today, these communities are fighting not just for land, but for their very identity and existence . आदिवासी कौन हैं? | Who Are Adivasis? Adivasi शब्द का अर्थ है — "सबसे पहले रहने वाले लोग" । They are the indigenous people of India, with unique languages, clothing, art, music, and governance systems. लेकिन आज, उन्हीं लोगों को अपने अस्तित्व को साबित करने की ज़रूरत पड़ रही है — “हम कौन हैं, ये हम नहीं बता पा रहे – बल्कि हमें बताया जा रहा है।” पहचान पर संकट | The Crisis of Identity ज़मीन छिन गई, तो संस्कृति भी बिखर गई जब आदिवासी समुदायों को उनकी ज़मीन से विस्थापित किया गया, तो उनके साथ उनकी बोली, उनके रीति-रिवाज़, और उनका सामाजिक ढांचा भी टूट गया। Land acquisition has not only uprooted families — ...

ग्रामसभा: सशक्तिकरण या केवल औपचारिकता?

ग्रामसभा: सशक्तिकरण या केवल औपचारिकता? लेखक: Adiwasiawaz  परिचय: ग्रामसभा की शक्ति और सच्चाई ग्रामसभा का विचार भारतीय लोकतंत्र में सबसे शक्तिशाली अवधारणाओं में से एक है, खासकर आदिवासी क्षेत्रों में। संविधान के अनुच्छेद 243 और पंचायती राज व्यवस्था के अंतर्गत ग्रामसभा को स्थानीय स्वशासन का आधार माना गया है। साथ ही, PESA (पेसा) अधिनियम 1996 और वन अधिकार अधिनियम 2006 में ग्रामसभा को निर्णायक शक्ति दी गई है। लेकिन जमीनी हकीकत इससे कितनी मेल खाती है? क्या ग्रामसभा सच में सशक्त है या यह केवल एक औपचारिकता बनकर रह गई है? ग्रामसभा: कानूनी अधिकार क्या कहते हैं? 1. पंचायती राज और PESA कानून PESA कानून के तहत अनुसूचित क्षेत्रों की ग्रामसभाओं को अधिकार दिया गया है कि वे: भूमि अधिग्रहण पर निर्णय लें खनन परियोजनाओं को स्वीकृति दें या रोकें पारंपरिक ज्ञान और संस्कृति की रक्षा करें प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग तय करें 2. वन अधिकार अधिनियम 2006 इस कानून के तहत ग्रामसभा को वनाधिकार मान्यता और CFR (Community Forest Rights) देने की शक्ति प्राप्त है। लेकिन कई बार य...

"शोषण मुक्त समाज की कल्पना"

https://amzn.to/3TY5ddi   🌿 शोषण मुक्त समाज की कल्पना और आदिवासी समाज की भूमिका "जहां हर हाथ को हक़ मिले, हर ज़मीन पर न्याय हो" आज जब हम एक समानता आधारित, न्यायपूर्ण और टिकाऊ विकास की बात करते हैं, तो सबसे महत्वपूर्ण सवाल उठता है — क्या वाकई हम एक शोषण मुक्त समाज की कल्पना कर सकते हैं? और अगर हाँ, तो वह कैसा होगा? यह सवाल सिर्फ सैद्धांतिक नहीं है, बल्कि हमारे सामाजिक ढांचे, आर्थिक नीतियों और सत्ता संरचनाओं से गहराई से जुड़ा हुआ है। इस संदर्भ में आदिवासी समाज की जीवनशैली, दर्शन और संघर्ष हमें एक वैकल्पिक दिशा दिखाते हैं, जो न केवल टिकाऊ है बल्कि वास्तव में शोषण-मुक्ति की राह पर ले जाने में सक्षम है। 🌱 आदिवासी जीवनदर्शन में पहले से है शोषण मुक्त समाज की झलक आदिवासी समाज सदियों से जंगल, पहाड़, नदी और ज़मीन के साथ सामंजस्यपूर्ण जीवन जीता आ रहा है। उनकी संस्कृति में न तो संपत्ति का निजी स्वामित्व है और न ही किसी एक व्यक्ति की सत्ता का वर्चस्व। ग्रामसभा के ज़रिए सामूहिक निर्णय, श्रम की बराबरी, महिलाओं की भागीदारी, और प्रकृति के साथ संतुलन — ये सभी आदिवासी जीव...

जल, जंगल जमीन खैरात नहीं हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है!

🌿 **वन अधिकार अधिनियम 2006: जंगल पर हक की ऐतिहासिक वापसी** 🌱 **"हम जंगल में जन्मे हैं, पेड़ों के बीच पले-बढ़े हैं, इन जंगलों की रक्षा हमारी सांसों में है। फिर भी हमें बेदखल कर दिया गया — लेकिन अब नहीं!"** भारत के वन क्षेत्रों में सदियों से रहने वाले **आदिवासी और पारंपरिक वनवासी समुदायों** का जीवन जंगलों पर आधारित रहा है। ये समुदाय जंगल को सिर्फ एक संसाधन नहीं, **एक जीवंत रिश्ता** मानते हैं। लेकिन विडंबना यह रही कि **औपनिवेशिक शासनकाल** से लेकर **स्वतंत्र भारत** तक, इन समुदायों को उनके ही जंगलों से बेदखल कर दिया गया। उन्हें **"अवैध अतिक्रमी"** कहा गया, जबकि असल में वे जंगलों के **पहरेदार** थे। इसी ऐतिहासिक अन्याय को सुधारने के लिए 2006 में भारतीय संसद ने एक क्रांतिकारी कानून पारित किया: 🛡 **वन अधिकार अधिनियम, 2006 (Forest Rights Act - FRA)** --- 🔍 **क्या है वन अधिकार अधिनियम (FRA)?** वन अधिकार अधिनियम 2006 का उद्देश्य उन आदिवासी और वनवासी समुदायों को उनके **परंपरागत अधिकारों की कानूनी मान्यता** देना है, जो दशकों से जंगलों में रहकर जीवन यापन करते आए है...