🌿 आदिवासी शोषण: जंगल के बेटों की अनकही पीड़ा
"जिस मिट्टी ने हमें जीवन दिया, उसी मिट्टी से हमें बेदखल किया जा रहा है।"
ये शब्द हैं एक बुजुर्ग आदिवासी के, जो अपने जंगल से बेदखल किए जाने के बाद आज भी न्याय की आस में हैं।
🧬 आदिवासी कौन हैं?
भारत के आदिवासी समुदाय हमारी सभ्यता के सबसे प्राचीन और प्रकृति से सबसे जुड़े हुए लोग हैं। इनकी जीवनशैली, संस्कृति, भाषा और परंपराएं हजारों सालों से जंगल, जमीन और जल के इर्द-गिर्द घूमती रही हैं। लेकिन अफ़सोस, इन्हीं प्राकृतिक संसाधनों पर जब बाज़ार, सरकार और माफिया की नज़र पड़ी, तो सबसे पहला शिकार आदिवासी ही बना।
🚨 शोषण के रूप
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भूमि अधिग्रहण और विस्थापन
विकास के नाम पर बड़े-बड़े प्रोजेक्ट्स — जैसे बांध, खदानें, उद्योग और सड़कें — आदिवासी इलाकों में लगाए गए। इसके लिए बिना मर्जी या मुआवज़ा दिए, लाखों आदिवासियों को उनकी पुश्तैनी जमीन से उजाड़ दिया गया। -
जंगल पर अधिकारों से वंचित करना
आदिवासियों का जीवन जंगल पर आधारित है, लेकिन "संरक्षित वन" घोषित करके उन्हें उनके पारंपरिक हक़ों से दूर कर दिया गया। वन अधिकार अधिनियम, 2006 के बावजूद, अधिकांश को आज तक पट्टा नहीं मिला। -
संस्कृति और पहचान पर हमला
शिक्षा, धर्म और भाषा के नाम पर आदिवासियों की पहचान को 'मुख्यधारा' में समाहित करने की कोशिशें, उनके अस्तित्व को खत्म करने जैसी हैं। -
नकली मुक़दमे और हिंसा
कई जगहों पर आदिवासी नेताओं और आंदोलनों को दबाने के लिए उन्हें नक्सली करार देकर झूठे केसों में फंसाया गया।
📜 कानून क्या कहते हैं?
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वन अधिकार अधिनियम (2006): आदिवासियों को जंगल पर व्यक्तिगत और सामुदायिक अधिकार देता है।
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पंचायत (अनुसूचित क्षेत्र विस्तार) अधिनियम - PESA (1996): ग्रामसभा को निर्णय लेने का अधिकार देता है।
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संविधान की अनुसूची 5 और 6: आदिवासी क्षेत्रों की विशेष सुरक्षा का प्रावधान करती हैं।
लेकिन हकीकत में ये कानून कागजों में दम तोड़ रहे हैं, क्योंकि ज़मीन पर न तो उन्हें सही से लागू किया जाता है और न ही जागरूकता फैलाई जाती है।
✊ समाधान की ओर कदम
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जन-जागरूकता अभियान
गांव-गांव जाकर लोगों को उनके कानूनी अधिकारों की जानकारी देना ज़रूरी है। -
ग्रामसभा की ताकत बढ़ाना
ग्रामसभा ही आदिवासी स्वशासन का सबसे मजबूत आधार है। PESA कानून का सही क्रियान्वयन जरूरी है। -
संगठन और एकता
'Adiwasi Sangharsh Morcha' जैसे संगठनों की भूमिका महत्वपूर्ण है जो जमीन, जंगल और संस्कृति की लड़ाई को नेतृत्व देते हैं। -
मीडिया और सोशल मीडिया पर आवाज़ उठाना
आज की लड़ाई केवल जंगल में नहीं, इंटरनेट और सोशल मीडिया पर भी लड़ी जा रही है। हर आदिवासी युवा को डिजिटल योद्धा बनना होगा।
🌱 अंत में...
शोषण को सहना भी एक प्रकार का अन्याय है।
अब समय आ गया है कि आदिवासी समाज अपने अधिकारों के लिए न केवल जागे, बल्कि संगठित होकर आवाज़ भी उठाए। जंगल, जमीन, जल और पहचान की रक्षा के लिए हमें हर मंच पर संघर्ष जारी रखना होगा।
"हम आदिवासी हैं, शोषण नहीं सहेंगे –
हम अपने अधिकार के लिए लड़ेंगे
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