झारखंड में भूमि अधिग्रहण और आदिवासी अधिकार: संघर्ष और समाधान
भूमि अधिग्रहण: विकास या विनाश?
झारखंड एक खनिज संपन्न राज्य है, लेकिन यहां आदिवासी समुदायों की जमीनें औद्योगिक परियोजनाओं, सड़कों, रेलवे और खनन के लिए जबरन ली जाती रही हैं। इससे न केवल उनका विस्थापन होता है बल्कि उनकी संस्कृति, पहचान और आजीविका पर भी गहरा असर पड़ता है।
कौन से कानून आदिवासियों को अधिकार देते हैं?
- संविधान की 5वीं अनुसूची: अनुसूचित क्षेत्रों में आदिवासियों के संरक्षण की बात करती है।
- PESA Act 1996: ग्रामसभा की अनुमति के बिना भूमि अधिग्रहण अवैध है।
- Forest Rights Act (FRA) 2006: जंगलों पर व्यक्तिगत और सामूहिक अधिकार देता है।
- Land Acquisition Act 2013 (LAAR): अधिग्रहण के पहले ग्रामसभा की मंजूरी, पुनर्वास और मुआवजा अनिवार्य बनाता है।
ग्रामसभा की भूमिका: क्या वो सच में सशक्त है?
कई जगहों पर ग्रामसभा को नजरअंदाज किया जाता है या सिर्फ दिखावे के लिए बुलाया जाता है। जबकि कानून के अनुसार, जमीन अधिग्रहण से पहले ग्रामसभा की स्पष्ट सहमति ज़रूरी है।
स्थानीय संघर्ष और आवाज़ें
रांची, रामगढ़, लातेहार जैसे जिलों में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आदिवासी समुदाय लगातार संघर्ष कर रहे हैं। ‘Adiwasiawaz’ जैसे संगठन इन आंदोलनों को मजबूती दे रहे हैं।
क्या करें अगर आपकी जमीन ली जा रही हो?
- ग्रामसभा बुलाकर लिखित विरोध दर्ज कराएं।
- RTI के ज़रिए दस्तावेज़ मांगें।
- Forest Rights Claim फ़ॉर्म भरें (यदि ज़मीन जंगल की हो)।
- जिलास्तरीय अधिकारियों को ज्ञापन दें और प्रमाण रखें।
- स्थानीय संगठन या वकीलों से संपर्क करें।
निष्कर्ष
झारखंड के आदिवासियों के सामने भूमि अधिग्रहण एक बड़ा संकट है, लेकिन संविधान और कानून उन्हें ताकत भी देते हैं। ज़रूरत है जागरूकता और एकजुटता की।
#Adiwasiawaz की अपील:
अपने अधिकारों को जानिए, ग्रामसभा को सशक्त बनाइए और अपनी जमीन की रक्षा कीजिए।
यह लेख Adiwasiawaz द्वारा तैयार किया गया है। कृपया इसे साझा करें ताकि ज़्यादा लोग जागरूक हो सकें।
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