🌧️ बरखा और आदिवासी खेती: प्रकृति के संग जीने की परंपरा
बरखा और आदिवासी खेती: जानिए कैसे वर्षा आधारित पारंपरिक खेती आदिवासी समाज का आधार है। जैविक खेती, देसी बीज, और सामूहिक कृषि संस्कृति पर आधारित एक अनोखी जीवनशैली।"
🌱 वर्षा आधारित खेती: आदिवासी जीवनशैली की रीढ़
भारत के आदिवासी समुदायों के लिए खेती केवल आजीविका नहीं, बल्कि संस्कृति और अस्तित्व का प्रतीक है। खासकर झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर राज्यों में आदिवासी खेती बरसात पर आधारित होती है।
☔ पहली बरसात और खेत की तैयारी
बरसात की पहली फुहार जब धरती को छूती है, तो आदिवासी किसान समझ जाते हैं कि अब हल, बैल और बीज तैयार करने का समय आ गया है। इस समय:
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धान की नर्सरी तैयार की जाती है।
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बीजों को देसी तरीके से उपचारित किया जाता है, जैसे राख या नीम पत्ती का प्रयोग।
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महिलाएं और पुरुष मिलकर सामूहिक रूप से खेतों की साफ-सफाई करते हैं।
🌾 आदिवासी खेती के प्रमुख लक्षण
🌿 जैविक और पारंपरिक खेती
आदिवासी किसान आज भी रासायनिक खाद की जगह:
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गोबर की खाद
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जंगल की पत्तियों से बनी खाद
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खुद के संरक्षित बीज
का उपयोग करते हैं। इससे उनकी खेती प्राकृतिक और पोषक होती है।
🤝 समुदाय आधारित कृषि व्यवस्था
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खेत की जोताई से लेकर कटाई तक, सब कुछ साझा श्रम पर आधारित होता है।
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'पैरा बांटना', 'धान रोपनी' और 'कटाई' जैसे कार्य में पूरा गांव साथ होता है।
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महिलाएं खेती की रीढ़ होती हैं – बीज बचाने से लेकर खेती में श्रम देने तक।
🌍 जलवायु संकट और आदिवासी खेती पर असर
आज जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा चक्र बिगड़ रहा है। समय पर बारिश न होने या अचानक भारी वर्षा से:
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फसलें खराब हो जाती हैं
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बीज बर्बाद हो जाते हैं
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खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ जाती है
🔍 समाधान क्या है?
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सरकार और समाज को चाहिए कि आदिवासी ज्ञान और बीजों को संरक्षित करे।
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वर्षा जल संरक्षण (जलछाजन) पर विशेष ज़ोर दिया जाए।
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"विकास बनाम पारंपरिक खेती" की बजाय "
🌾 निष्कर्ष: बरखा और आदिवासी खेती – रिश्ता जो रगों में बहता है
बरखा सिर्फ पानी नहीं, आदिवासी जीवन की सांस है। उनकी खेती, संस्कृति और उत्सव सब कुछ बरखा पर निर्भर है। ऐसे में हमें यह समझना होगा कि अगर आदिवासी खेती बची रहेगी, तो हमारी पृथ्वी की हरियाली भी बची रहेगी।
https://adiwasiawaz.blogspot.com/2025/07/barkha-aur-adiwasi-kheti.html
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