आदिवासी: एक स्वशासन व्यवस्था और कानूनी अधिकार
आदिवासी अधिकार, स्वशासन व्यवस्था, पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम 1996, PESA Act, Fifth Schedule, आदिवासी स्वशासन, ग्राम सभा का अधिकार, जनजातीय संविधानिक अधिकार
भूमिका: आदिवासी समाज का स्वाभाविक शासन
आदिवासी समाज सदियों से जंगल, जमीन और जल के साथ आत्मनिर्भर जीवन जीता रहा है। उनका शासन न तो बाहरी ताकतों पर निर्भर रहा है और न ही किसी एकतंत्रीय प्रणाली पर। वे अपने समुदाय के नियमों से चलते हैं, जहाँ निर्णय ग्राम सभा के माध्यम से लिए जाते हैं।
आदिवासी स्वशासन क्या है?
पारंपरिक ग्राम सभा और नेतृत्व प्रणाली
आदिवासी समाज में ग्राम प्रमुख, मांझी, परगनैत, मांझी-हादाम, जैसे पद स्वशासन के अंग हैं। ये पद वंशानुगत न होकर सामूहिक सहमति से तय होते हैं।
निर्णय लेने की प्रक्रिया
हर महत्वपूर्ण निर्णय – चाहे वह भूमि से जुड़ा हो, विवाह से या सामाजिक न्याय से – ग्राम सभा के सामने रखा जाता है। यह एक लोकतांत्रिक, पारदर्शी और सहभागितापूर्ण प्रक्रिया है।
कानूनी अधिकार और संविधान में आदिवासी समाज
भारत के संविधान में आदिवासियों को कई विशेष अधिकार दिए गए हैं जो उनके संस्कृति, संसाधन और पहचान की रक्षा करते हैं।
पांचवीं अनुसूची (Fifth Schedule)
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राज्यों में अनुसूचित क्षेत्र को स्वशासित करने की व्यवस्था।
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राज्यपाल को विशेष शक्तियाँ, लेकिन ग्राम सभा की सहमति अनिवार्य।
PESA Act, 1996 (पेसा कानून)
Panchayats (Extension to the Scheduled Areas) Act, 1996:
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अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभा को सर्वोच्च अधिकार दिया गया है।
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खनिज, जल, जंगल और जमीन से संबंधित निर्णय ग्राम सभा द्वारा लिए जाने चाहिए।
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ठेका, खनन, भूमि अधिग्रहण, शराब बिक्री जैसे मामलों में ग्राम सभा की अनिवार्य सहमति।
ग्राम सभा की ताकत और ज़मीनी हकीकत
ग्राम सभा का कानूनी अधिकार
"ग्राम सभा सिर्फ बैठक नहीं है, यह आदिवासी लोकतंत्र का मूल स्तंभ है।"
PESA और पांचवीं अनुसूची ने ग्राम सभा को:
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जमीन के पट्टे देने या न देने का अधिकार,
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प्राकृतिक संसाधनों पर निर्णय लेने का अधिकार,
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सांस्कृतिक परंपराओं को बनाए रखने का अधिकार,
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और स्थानीय विवादों का निपटारा करने का अधिकार दिया है।
ज़मीनी स्तर पर चुनौतियाँ
हालांकि कानून आदिवासियों के पक्ष में है, लेकिन जमीनी स्तर पर:
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प्रशासनिक हस्तक्षेप,
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खनन कंपनियों का दबाव,
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ग्राम सभा की उपेक्षा,
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और जनजातीय युवाओं को कानून की जानकारी न होना – ये बड़ी बाधाएं हैं।
समाधान और दिशा
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ग्राम सभा को मजबूत बनाना – हर गांव में नियमित रूप से बैठक और प्रशिक्षण।
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कानूनी साक्षरता अभियान – PESA, FRA, SC/ST Act की जानकारी।
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युवा नेतृत्व का निर्माण – जागरूक युवा ही आंदोलन और विकास का सेतु बन सकते हैं।
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सरकारी योजनाओं में ग्राम सभा की भागीदारी अनिवार्य की जाए।
निष्कर्ष: आदिवासी समाज का भविष्य उनके अपने हाथों में
आदिवासी समाज किसी पर निर्भर नहीं रहा, न रहेगा। स्वशासन, सामुदायिक निर्णय, और कानूनी अधिकारों की जानकारी उन्हें सशक्त बना सकती है।
अब समय है कि संविधान में मिले अधिकारों को जमीन पर उतारा जाए और "गांव की सरकार, गांव में ही हो" – इस सोच को सच्चाई में बदला जाए।
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