Adhikar: FRA अधिकारों को जानें
(लेखक: Sunil Kisku | संगठन: Adiwasiawaz)
भारत में जंगलों पर आदिवासियों का पारंपरिक संबंध रहा है। पीढ़ियों से आदिवासी समुदाय जंगल के साथ जीते रहे हैं — वहीं से भोजन, ईंधन, दवा, और सम्मान मिलता रहा है। लेकिन लंबे समय तक इन समुदायों को उनके पारंपरिक अधिकार नहीं दिए गए। इसी पृष्ठभूमि में Forest Rights Act, 2006 (FRA) लाया गया ताकि वन क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासियों और अन्य पारंपरिक वनवासी समुदायों को उनके जमीन और जंगल पर अधिकार दिए जा सकें।
FRA क्या है और क्यों ज़रूरी है?
Forest Rights Act 2006, जिसे हिंदी में 'वन अधिकार अधिनियम' कहा जाता है, भारत सरकार द्वारा बनाया गया एक ऐतिहासिक कानून है। यह कानून दो प्रमुख समुदायों — अनुसूचित जनजातियों (Scheduled Tribes) और अन्य पारंपरिक वनवासी (OTFDs) — को मान्यता देता है कि वे जंगल में पीढ़ियों से रहते और उसे उपयोग करते आए हैं।
इससे पहले तक इन्हें 'अवैध कब्जाधारी' समझा जाता था, लेकिन FRA ने इनकी संवैधानिक पहचान को स्वीकारा और अधिकार दिया।
FRA के तहत दो मुख्य अधिकार दिए जाते हैं:
- व्यक्तिगत वन अधिकार (IFR)
- सामुदायिक वन अधिकार (CFR)
व्यक्तिगत वन अधिकार (IFR) क्या है?
यह अधिकार किसी व्यक्ति या परिवार को दिया जाता है जो जंगल की ज़मीन पर वर्षों से खेती करता रहा है। FRA के तहत व्यक्ति को अधिकतम 4 हेक्टेयर तक की ज़मीन का अधिकार मिल सकता है।
जरूरी बात: यह ज़मीन का मालिकाना हक है, लेकिन इसे बेचा नहीं जा सकता। यह सिर्फ उपयोग और संरक्षण के लिए दिया जाता है।
सामुदायिक वन अधिकार (CFR) क्या है?
यह अधिकार पूरे गाँव या ग्रामसभा को मिलता है। इसके तहत गांव को अपने पारंपरिक जंगलों में:
- लकड़ी (गैर-वानिकी उद्देश्य से),
- पत्ते (महुआ, साल, तendu),
- जड़ी-बूटी,
- जल स्रोत,
- मछली,
- पालतू जानवरों के चराई आदि
का उपयोग करने का अधिकार मिलता है। साथ ही ग्रामसभा जंगल की रक्षा और प्रबंधन का भी हकदार बनती है।
ग्रामसभा की भूमिका और ताकत
Forest Rights Act में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका ग्रामसभा की है।
ग्रामसभा ही:
- दावेदार का आवेदन स्वीकार करती है
- उसका सत्यापन करती है
- नक्शा तैयार कराती है
- और रिपोर्ट को अनुमोदित करती है
यहां तक कि राज्य सरकार भी ग्रामसभा के फैसले को आसानी से खारिज नहीं कर सकती।
इससे जन-शक्ति और स्थानीय लोकतंत्र को मजबूती मिलती है।
झारखंड में FRA का ज़मीनी हाल
झारखंड जैसे आदिवासी बहुल राज्य में FRA लागू हुए 15+ साल हो चुके हैं, लेकिन इसकी प्रभावी पहुँच अब भी सीमित है। कई गांवों में:
- FRA की जानकारी नहीं है
- सर्वे ही नहीं हुआ
- आवेदन कैसे करें यह नहीं मालूम
- अधिकारियों की अनिच्छा भी बड़ी रुकावट है
हालांकि, 'Adiwasiawaz' जैसे जनसंगठनों की पहल से अब कुछ गांवों में ग्रामसभा सक्रिय हो रही है, लोग सामुदायिक दावे भर रहे हैं, और अधिकार प्राप्त कर रहे हैं।
FRA से क्या फायदे हैं?
- संरक्षित आजीविका: जंगल से मिलने वाली चीजों पर अधिकार मिलने से आजीविका सुरक्षित होती है।
- सांस्कृतिक पुनर्स्थापन: पारंपरिक रीति-रिवाजों और जंगल आधारित संस्कृति को कानूनी पहचान मिलती है।
- पर्यावरण संरक्षण: जब जंगल पर स्थानीय समुदायों का हक होता है, तो वे उसे बेहतर तरीके से बचाते हैं।
- न्याय की दिशा में कदम: जो समुदाय पीढ़ियों से वंचित थे, उन्हें न्याय मिलता है।
क्या FRA के अधिकार जमीन खरीदने जैसे हैं?
नहीं। FRA के तहत जो जमीन दी जाती है वह सिर्फ उपयोग के लिए होती है, न कि निजी संपत्ति के रूप में बेचने के लिए। इसका उद्देश्य संपत्ति का निर्माण नहीं, बल्कि पहचान और संरक्षण देना है।
FRA लागू करने में चुनौतियाँ
- सरकारी उदासीनता – अधिकारी FRA को प्राथमिकता नहीं देते।
- जानकारी का अभाव – लोगों को खुद नहीं पता कि उनका हक़ क्या है।
- राजनीतिक हस्तक्षेप – कई बार ग्रामसभा के निर्णय को नजरअंदाज किया जाता है।
- फर्जी दावे और भ्रष्टाचार – कुछ जगहों पर FRA का गलत इस्तेमाल भी हुआ।
क्या करें? जागरूकता ही समाधान है
FRA अधिकार पाने का रास्ता सिर्फ जागरूकता और संगठन है। जब ग्रामसभा मजबूत होगी, लोग प्रशिक्षित होंगे, और अधिकारों के लिए एकजुट होंगे — तभी यह कानून ज़मीन पर उतरेगा।
Adiwasiawaz क्या कर रहा है?
Adiwasiawaz झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर:
- FRA पर आधारित बुकलेट, पोस्टर और ट्रेनिंग प्रदान करता है
- ग्रामसभा को सशक्त करने के लिए अभियान चलाता है
- व्यक्तिगत और सामूहिक दावा भरने में मदद करता है
- और लोगों को अपने हक़ के लिए खड़ा होने को प्रेरित करता है
👉 आप इस पहल से जुड़ सकते हैं:
https://kusku87.blogspot.com
निष्कर्ष: अधिकार जानते हैं तभी मिलते हैं
Forest Rights Act कोई दया का कानून नहीं, ये संवैधानिक मान्यता है उस संघर्ष की जो आदिवासी समुदायों ने वर्षों से किया है। हमें यह समझना होगा कि हमारा जंगल, हमारी ज़मीन, हमारा हक़ — अब क़ानूनी रूप से सुरक्षित है। लेकिन जब तक हम इसे जानेंगे नहीं, तब तक इसका लाभ नहीं मिलेगा।
इसलिए आइए, अपने अधिकार को जानें, समझें और गाँव-गाँव इसे लागू कराएं।
लेखक: Sunil Kisku
संगठन: Adiwasiawaz

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