PESA कानून: प्रभाव और अमल
लेखक: AdiwasiAwaz
तारीख: 29 जुलाई 2025
🟢 PESA कानून क्या है?
PESA (Panchayats Extension to Scheduled Areas Act) कानून भारत सरकार द्वारा वर्ष 1996 में पारित एक ऐतिहासिक अधिनियम है, जो संविधान की 73वीं संशोधन अधिनियम के तहत अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायतों की शक्तियों और कार्यक्षेत्र को विस्तारित करता है। इसका मुख्य उद्देश्य है कि आदिवासी समुदायों को उनके पारंपरिक स्वशासन की व्यवस्था के अनुसार अधिकार मिले।
PESA कानून यह मानता है कि आदिवासी समाज की संस्कृति, परंपरा और जीवनशैली विशेष होती है। इस कारण उन्हें वही शासन प्रणाली दी जानी चाहिए जो उनके सामाजिक ढांचे से मेल खाती हो।
🟢 PESA कानून की पृष्ठभूमि
भारत के संविधान में 5वीं अनुसूची के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों में आदिवासी समुदायों की सुरक्षा और स्वशासन की बात की गई थी, परंतु 73वें संविधान संशोधन (1992) के दौरान ये क्षेत्र पंचायत व्यवस्था से बाहर रखे गए। इसकी पूर्ति के लिए 1996 में PESA अधिनियम लाया गया।
यह कानून नौ राज्यों — झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और राजस्थान — के अनुसूचित क्षेत्रों में लागू है।
🟢 PESA कानून की प्रमुख विशेषताएं
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ग्रामसभा को सर्वोच्च अधिकार
ग्रामसभा को निर्णय लेने की सर्वोच्च संस्था माना गया है। भूमि अधिग्रहण, खनन, विकास योजनाएं, शराब बिक्री आदि पर ग्रामसभा की सहमति अनिवार्य है। -
प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकार
जल, जंगल और जमीन पर आदिवासी समुदाय का परंपरागत स्वामित्व मान्यता प्राप्त करता है। -
पारंपरिक रीति-रिवाजों को मान्यता
स्थानीय रीति-रिवाज़, परंपराएं और सामाजिक नियमों को कानूनी स्वीकृति दी जाती है। -
महिला भागीदारी को बढ़ावा
ग्रामसभा और पंचायतों में महिलाओं की भागीदारी को आवश्यक माना गया है। -
स्थानीय न्याय प्रणाली
ग्राम स्तर पर विवादों का समाधान परंपरागत तरीकों से करने का अधिकार मिलता है।
🟢 झारखंड में PESA का प्रभाव
झारखंड में PESA कानून को 2023 में राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित किया गया। इसके तहत राज्य सरकार ने PESA नियमावली जारी की, जिससे ग्रामसभा को अधिक सशक्त बनाया गया।
हालांकि कानून लागू हो चुका है, लेकिन ज़मीनी स्तर पर इसका प्रभाव अभी भी सीमित है। प्रशासनिक हस्तक्षेप, कॉर्पोरेट प्रभाव और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण कई ग्रामसभाएं अब भी कमजोर स्थिति में हैं।
🟢 ग्रामसभा की भूमिका
PESA कानून के तहत ग्रामसभा केवल एक औपचारिक संस्था नहीं, बल्कि एक वास्तविक निर्णायक शक्ति है। ग्रामसभा:
- वन अधिकार अधिनियम के अंतर्गत सामुदायिक दावों की पुष्टि करती है
- स्थानीय योजनाओं को स्वीकृति देती है
- भूमि के उपयोग और अधिग्रहण पर निर्णय लेती है
- शराब दुकान की अनुमति या विरोध कर सकती है
- खनन परियोजनाओं पर सहमति या असहमति दे सकती है
🟢 PESA और महिलाओं की भागीदारी
PESA अधिनियम में महिलाओं को ग्रामसभा की बैठकों में शामिल करना और उन्हें निर्णय लेने की प्रक्रिया में भागीदार बनाना अनिवार्य माना गया है। यह महिलाओं को नेतृत्व में लाने और उनकी सामाजिक स्थिति मजबूत करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।
🟢 व्यवहारिक चुनौतियाँ
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जागरूकता की कमी:
अधिकांश ग्रामीणों को यह तक पता नहीं कि उनके पास इतने व्यापक अधिकार हैं। -
भाषा की बाधा:
नियमावली और सरकारी दस्तावेज़ स्थानीय भाषा में नहीं हैं। -
प्रशासनिक हस्तक्षेप:
कई जगह अधिकारियों द्वारा ग्रामसभा के निर्णयों की अनदेखी होती है। -
राजनीतिक और कॉर्पोरेट दबाव:
खनन, सड़क, और अन्य परियोजनाओं में ग्रामसभा की सहमति ली ही नहीं जाती।
🟢 समाधान क्या हो सकते हैं?
- स्थानीय भाषा में नियमों का प्रचार-प्रसार
- ग्रामसभा प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन
- महिला नेतृत्व को बढ़ावा देना
- PESA को शिक्षा पाठ्यक्रम में शामिल करना
- सोशल ऑडिट और पारदर्शिता के साधन
- स्थानीय संगठनों की सक्रिय भागीदारी, जैसे Adiwasiawaz, जो लोगों को उनके अधिकारों की जानकारी दे और कानूनी मदद प्रदान करे।
🟢 Adiwasiawaz का दृष्टिकोण
हमारा संगठन Adiwasiawaz मानता है कि PESA कानून केवल कानूनी औज़ार नहीं, बल्कि आदिवासी आत्मनिर्णय और संस्कृति की सुरक्षा का हथियार है। हमारा लक्ष्य है कि हर ग्रामसभा सशक्त बने, हर आदिवासी युवा अधिकारों के लिए जागरूक हो, और हर महिला नेतृत्व में आगे आए।
🟢 निष्कर्ष
PESA कानून का सशक्त क्रियान्वयन न केवल संविधान की भावना के अनुरूप है, बल्कि यह आदिवासी समुदायों के समग्र विकास, संरक्षण और आत्मनिर्भरता की कुंजी है। जब तक ग्रामसभा को उसका वैधानिक और व्यावहारिक अधिकार नहीं दिया जाएगा, तब तक लोकतंत्र जमीनी नहीं बन पाएगा।
PESA का वास्तविक अमल ही आदिवासी भारत के विकास की सही दिशा तय करेगा।
#Adiwasiawaz | आपकी जमीन, आपकी हक
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