आदिवासी इस देश के मालिक हैं: ऐतिहासिक हक और आज की चुनौतियाँ
आदिवासी कौन हैं? – भारत के असली मालिक
भारत की धरती पर सबसे पहले कदम रखने वाले लोग आदिवासी समुदाय से ही आते हैं। ये वह समाज है जिसने हजारों वर्षों से जल, जंगल और जमीन के साथ सामंजस्य बनाकर जीवन जिया। ये न केवल प्रकृति के संरक्षक रहे हैं, बल्कि भारत की सबसे प्राचीन सभ्यता के वाहक भी हैं।
भारत के संविधान में आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribes) कहा गया है, लेकिन उनकी पहचान केवल "आरक्षण" तक सीमित नहीं है। वे भारत के मूलनिवासी हैं — इस देश के पहले मालिक।
“आदिवासी इस देश के मालिक हैं” – यह वाक्य क्यों ऐतिहासिक है?
ब्रिटिश उपनिवेशवाद और भूमि से बेदखली
अंग्रेजों ने जब भारत पर कब्जा किया, तो सबसे पहले आदिवासी इलाकों को निशाना बनाया। जंगलों को राजस्व का स्रोत मानते हुए वन कानून बनाए गए, जिससे आदिवासी समुदाय अपनी ही जमीन से बेदखल कर दिए गए। लेकिन आदिवासियों ने कभी हार नहीं मानी — संथाल विद्रोह, मुंडा विद्रोह (उलगुलान), भील आंदोलन, कोल विद्रोह जैसे सैकड़ों आंदोलन हुए।
आज़ादी के बाद भी नहीं मिली मालिकाना हक
1947 के बाद भी आदिवासी समुदाय के साथ न्याय नहीं हुआ। खनिज संसाधनों की लूट, बड़ी-बड़ी विकास परियोजनाओं (डैम, माइंस, कारखाने) के नाम पर उन्हें फिर से विस्थापित किया गया। लेकिन संविधान ने उन्हें कुछ अधिकार भी दिए — पांचवीं अनुसूची, पेसा कानून, वन अधिकार अधिनियम 2006 (FRA) — जो यह मानते हैं कि आदिवासी इस जमीन के असली मालिक हैं।
आज की चुनौतियाँ: मालिक से भिखारी बनाने की साज़िश
आज आदिवासी समुदाय को फिर से हाशिए पर धकेला जा रहा है:
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खनन परियोजनाएं उनकी ज़मीन छीन रही हैं
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वन विभाग FRA को लागू नहीं करता
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निजीकरण और कॉर्पोरेट कब्जा के खिलाफ आवाज़ उठाने पर आदिवासी नेताओं को माओवादी कहकर जेल भेजा जा रहा है
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शिक्षा और स्वास्थ्य से वंचित, युवाओं को ठेका मज़दूरी में धकेलना
यह सब आदिवासी समाज को मालिक से भिखारी बनाने की साज़िश है।
हल क्या है? – संगठन, जागरूकता और हक की लड़ाई
अधिकारों की जानकारी ही असली ताकत
जब तक हर आदिवासी को यह नहीं पता चलेगा कि वह इस देश का मालिक है, तब तक उसका हक छीना जाता रहेगा। इसलिए ज़रूरी है कि:
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हर गाँव में वन अधिकार अधिनियम लागू हो
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ग्राम सभा को मजबूत किया जाए
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युवा नेतृत्व खड़ा हो
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शिक्षा को स्थानीय भाषा और संस्कृति से जोड़ा जाए
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मीडिया और सोशल प्लेटफॉर्म से आवाज़ उठे
निष्कर्ष: मालिक होने का मतलब सिर उठाकर जीना
“आदिवासी इस देश के मालिक हैं” सिर्फ नारा नहीं, एक सच्चाई है। यह पहचान सिर्फ इतिहास की नहीं, आने वाली पीढ़ियों की सुरक्षा की गारंटी है। जब तक जंगल बचे हैं, तब तक आदिवासी हैं। और जब तक आदिवासी हैं, तब तक यह धरती बचेगी।
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