आदिवासी और पंचमी अनुसूची के संवैधानिक अधिकार
भूमिका
भारतीय संविधान में आदिवासी समुदायों के अधिकारों की रक्षा के लिए **पंचमी अनुसूची (5th Schedule)** और **छठी अनुसूची (6th Schedule)** प्रावधान किए गए हैं। यह लेख आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों, विशेषकर पंचमी अनुसूची के तहत प्राप्त सुरक्षा उपायों और वर्तमान चुनौतियों पर स्थानीय दृष्टिकोण से प्रकाश डालता है।
पंचमी अनुसूची क्या है? (What is the 5th Schedule?)
**पंचमी अनुसूची** भारतीय संविधान का एक विशेष प्रावधान है जो **आदिवासी बहुल क्षेत्रों** (असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम को छोड़कर) के प्रशासन और नियंत्रण से संबंधित है। इसके तहत:
-जनजातीय सलाहकार परिषद (TAC) का गठन
राज्यपाल को विशेष अधिकार
भूमि हस्तांतरण पर प्रतिबंध
-स्थानीय स्वशासन को बढ़ावा
आदिवासी अधिकार और पंचमी अनुसूची (Tribal Rights & 5th Schedule)
1. भूमि का संरक्षण: आदिवासी भूमि को गैर-आदिवासियों द्वारा अधिग्रहण से बचाने के लिए कानून।
2. सांस्कृतिक स्वायत्तता: स्थानीय परंपराओं और रीति-रिवाजों की सुरक्षा।
3. वन अधिकार अधिनियम (2006): वन भूमि पर पारंपरिक अधिकारों की मान्यता।
4. राज्यपाल की विशेष शक्तियाँ: अनुसूचित क्षेत्रों के हित में नीतिगत निर्णय लेने का अधिकार।
स्थानीय चुनौतियाँ (Local Challenges)
खनन और विस्थापन: झारखंड, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में आदिवासी भूमि का अतिक्रमण।
प्रशासनिक उपेक्षा: TAC की सिफारिशों को लागू न करना।
शिक्षा और रोजगार में पिछड़ापन: सरकारी योजनाओं का लाभ न मिलना।
निष्कर्ष
पंचमी अनुसूची आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा का एक महत्वपूर्ण साधन है, लेकिन इसके कार्यान्वयन में सुधार की आवश्यकता है। स्थानीय स्तर पर जागरूकता और सरकारी प्रयासों के बेहतर समन्वय से ही आदिवासी समुदायों का सशक्तिकरण संभव है।
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