शहीदों को समर्पित: Dishom Guru का आंदोलन और झारखंड का इतिहास
Dedicated to the Martyrs: The Movement of Dishom Guru and the History of Jharkhand
🪶 परिचय | Introduction
झारखंड की धshibu-soren-jharkhand-movement-dishom-guruरती वीरों और आंदोलनों की भूमि रही है। यहां के जंगल, पहाड़ और नदियाँ सिर्फ प्रकृति की संपदा नहीं हैं, बल्कि यह संघर्षों और बलिदानों की गवाही भी देती हैं। उन्हीं संघर्षों में एक नाम जो आदिवासी चेतना, अधिकारों और पहचान की लड़ाई का प्रतीक बन गया — वह है Dishom Guru Shibu Soren.
Jharkhand's identity is incomplete without remembering the tribal resistance led by Shibu Soren. He was not just a political leader but a symbol of revolution, justice, and tribal pride.
✊🏻 #Hul_Krantikari_Se_Dishom_Guru_Tak: एक आंदोलन की यात्रा
From the Hul Movement to the Tribal Mass Awakening
1855 का सिद्धू-कान्हू का हुल आंदोलन, फिर बिरसा मुंडा की उलगुलान, और 1970 के दशक में Shibu Soren का संथाल परगना से उभरता आदिवासी आंदोलन — यह सब एक सिलसिले की कड़ियाँ हैं।
Shibu Soren, जिन्हें लोग प्यार से "Dishom Guru" कहते हैं, उन्होंने 1972 में Jharkhand Mukti Morcha (JMM) की स्थापना की। यह सिर्फ एक पार्टी नहीं, बल्कि आदिवासी हक और ज़मीन की लड़ाई का संगठित मंच था।
🌱 Dishom Guru का सपना: Jal, Jungle, Zameen पर हो अपना अधिकार
"हम आदिवासी हैं, जंगल हमारे हैं, ज़मीन हमारी है, हम पर राज नहीं किया जा सकता।"
यह Shibu Soren की सोच थी। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि:
- खनन कंपनियों द्वारा आदिवासियों की ज़मीन छीनना बंद हो
- Fifth Schedule (पाँचवीं अनुसूची) के तहत आदिवासी इलाकों की रक्षा हो
- PESA Act, CNT-SPT Act का सही पालन हो
- Forest Rights Act (2006) को लागू किया जाए
झारखंड अलग राज्य आंदोलन में भूमिका
Jharkhand को बिहार से अलग कर एक नया राज्य बनाने की माँग में Dishom Guru की आवाज़ सबसे ऊँची थी। 1990 के दशक में जब आदिवासी आंदोलन ज़ोर पकड़ रहा था, Shibu Soren ने संसद से लेकर गाँव तक आंदोलन खड़ा किया।
15 नवंबर 2000 को जब Jharkhand राज्य बना, तो यह केवल एक भौगोलिक निर्माण नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक न्याय की जीत थी।
जननेता या जनआंदोलन?
Shibu Soren को "जननेता" कहना उनके योगदान को सीमित करना होगा। वे स्वयं एक आंदोलन थे। गाँव-गाँव घूमकर उन्होंने आदिवासियों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक किया।
उनका एक-एक शब्द, एक-एक नारा आज भी गाँवों में गूंजता है —
"हम झारखंडी हैं, झारखंड हमारा है।"
श्रद्धांजलि और प्रेरणा
आज जब Dishom Guru हमारे बीच नहीं हैं, तब हमें उनके विचारों को ज़िंदा रखने की ज़रूरत है —
- उनके अधूरे सपनों को पूरा करना
- आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा करना
- झारखंड की आत्मा को बाज़ारवाद से बचाना
उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि अगर इरादे मजबूत हों तो झोपड़ी से संसद तक का सफर तय किया जा सकता है — और वो भी अपनी अस्मिता को बचाए रखते हुए।
निवेदन | Call to Action
✊ आइए, Dishom Guru को सिर्फ याद न करें, उनके आंदोलन को ज़िंदा रखें।
💬 अगर आप भी झारखंड की अस्मिता, जंगल-जमीन और संस्कृति की लड़ाई में आवाज़ बनना चाहते हैं, तो इस लेख को शेयर करें और लोगों को जागरूक करें।
अंतिम शब्द | Conclusion
Dishom Guru Shibu Soren झारखंड ही नहीं, पूरे भारत के आदिवासी आंदोलन के स्तंभ थे ।उन्होंने हमें सिखाया कि "अधिकार मांगने से नहीं, लड़ने से मिलता है।"
आज जब हम झारखंड की बात करते हैं, तो उसमें Dishom Guru की कहानी नहीं, बल्कि उनकी आत्मा बसती है।
यह लेख "Adiwasiawaz" की तरफ़ से प्रकाशित किया जा रहा है।
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📚 "Tribal Hero: Shibu Soren" – एक प्रेरणादायक यात्रा
झारखंड आंदोलन के महानायक Dishom Guru शिबू सोरेन के संघर्ष, नेतृत्व और आदिवासी अस्मिता की कहानी अब किताब के रूप में उपलब्ध है।
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