पाँचवीं अनुसूची और आदिवासी स्वशासन: संविधान का वादा (Fifth Schedule and Tribal Self-Governance: Constitutional Promise
पाँचवीं अनुसूची और आदिवासी स्वशासन: संविधान का वादा
(Fifth Schedule and Tribal Self-Governance: Constitutional Promise)
भारत का संविधान केवल एक क़ानूनी दस्तावेज़ नहीं है, बल्कि यह देश की आत्मा है। इसमें आदिवासी समाज (Adivasi Community) के लिए विशेष प्रावधान किए गए ताकि उनकी पहचान, संस्कृति और ज़मीन सुरक्षित रहे। इनमें से सबसे महत्वपूर्ण है "पाँचवीं अनुसूची (Fifth Schedule)", जो आदिवासी स्वशासन (Tribal Self-Governance) का आधार मानी जाती है।
पाँचवीं अनुसूची क्या है? (What is Fifth Schedule?)
पाँचवीं अनुसूची (Fifth Schedule) भारतीय संविधान का वह प्रावधान है, जो अनुसूचित क्षेत्रों (Scheduled Areas) और वहाँ रहने वाले आदिवासी समुदायों के लिए बनाया गया है।
इसका उद्देश्य है –
- आदिवासियों की ज़मीन की सुरक्षा
- उनकी संस्कृति और परंपरा की रक्षा
- स्थानीय स्तर पर स्वशासन (Self-Governance)
- शोषण और विस्थापन से बचाव
👉 अंग्रेज़ी में कहें तो:
The Fifth Schedule provides special governance for Scheduled Areas and Tribal Communities to safeguard their land, culture, and autonomy.
संविधान का वादा और आदिवासी स्वायत्तता
(Constitutional Promise and Tribal Autonomy)
राष्ट्रपति और राज्यपाल की भूमिका
पाँचवीं अनुसूची में राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि वे किसी क्षेत्र को अनुसूचित क्षेत्र (Scheduled Area) घोषित करें।
वहीं, राज्यपाल को यह अधिकार दिया गया है कि वे:
- आदिवासी क्षेत्रों के लिए विशेष नियम-क़ानून बनाएँ
- ज़रूरत पड़ने पर राज्य विधान सभा के क़ानूनों को लागू न करें
- क्षेत्र की ज़रूरत के अनुसार संशोधन करें
👉 इससे साफ़ है कि संविधान ने आदिवासियों को सीधा यह वादा किया कि उनकी ज़मीन, जंगल और जल पर बाहरी दख़लंदाज़ी नहीं होगी।
परामर्शी परिषद (Tribes Advisory Council - TAC)
संविधान ने हर राज्य में जहाँ अनुसूचित क्षेत्र हैं, वहाँ Tribes Advisory Council (TAC) बनाने का प्रावधान किया।
इस परिषद का काम है:
- आदिवासी हितों से जुड़ी नीतियों पर सुझाव देना
- ज़मीन अधिग्रहण, विस्थापन, और जंगल के अधिकारों पर सलाह देना
लेकिन सच्चाई यह है कि कई राज्यों में TAC केवल औपचारिकता बनकर रह गई है।
आदिवासी स्वशासन और PESA Act 1996
(Tribal Self-Governance and PESA Act 1996)
संविधान की पाँचवीं अनुसूची को मज़बूत करने के लिए संसद ने PESA Act (Panchayats Extension to Scheduled Areas Act, 1996) बनाया।
PESA के मुख्य प्रावधान
- ग्रामसभा (Gram Sabha) को सर्वोच्च मान्यता
- ग्रामसभा की अनुमति के बिना ज़मीन अधिग्रहण नहीं
- खनिज और जंगल पर ग्रामसभा का नियंत्रण
- परंपरागत तरीकों से न्याय देने का अधिकार
👉 यह सीधा मतलब है कि संविधान का वादा अब केवल काग़ज़ पर नहीं, बल्कि व्यवहारिक रूप से आदिवासी स्वशासन में बदलना चाहिए।
ज़मीनी हक़ीक़त – वादा अधूरा क्यों?
(Ground Reality – Why is the Promise Incomplete?)
हालांकि संविधान ने आदिवासियों को स्वशासन का अधिकार दिया, लेकिन वास्तविकता में तस्वीर अलग है।
चुनौतियाँ
- खनन और उद्योगों का दबाव – आदिवासी ज़मीन पर लगातार कब्ज़ा
- ग्रामसभा की अनदेखी – अक्सर उनकी सहमति के बिना प्रोजेक्ट पास
- TAC की कमजोरी – केवल औपचारिक संस्था बनकर रह गई
- भ्रष्टाचार और राजनीति – आदिवासी हितों को नज़रअंदाज़ किया गया
👉 अंग्रेज़ी में:
Despite Constitutional promises, mining projects, displacement, and weak implementation of laws continue to exploit tribal communities.
समाधान की राह (Way Forward)
ग्रामसभा को मज़बूत करना
ग्रामसभा को केवल औपचारिक संस्था न मानकर उसे निर्णय लेने का वास्तविक अधिकार देना होगा।
PESA और FRA का कड़ाई से पालन
- PESA Act 1996
- Forest Rights Act 2006
दोनों क़ानूनों का ज़मीनी स्तर पर सख़्ती से पालन होना चाहिए।
संविधान के वादे को हक़ीक़त बनाना
आदिवासी स्वशासन तभी सफल होगा जब:
- आदिवासियों को ज़मीन का मालिकाना हक़ मिले
- स्थानीय विकास योजनाएँ उन्हीं की सहमति से बने
- सांस्कृतिक पहचान की रक्षा हो
निष्कर्ष (Conclusion)
भारतीय संविधान ने पाँचवीं अनुसूची के ज़रिए आदिवासियों को विशेष अधिकार और स्वशासन का वादा किया। लेकिन यह वादा अभी भी अधूरा है।
आज ज़रूरत है कि:
- ग्रामसभा को असली ताक़त मिले
- TAC को मज़बूत किया जाए
- PESA और FRA का ईमानदारी से पालन हो
👉 तभी संविधान का यह सपना साकार होगा कि आदिवासी समाज अपने संसाधनों पर मालिक बने, न कि केवल दर्शक।
Call to Action
👉 अगर आप भी मानते हैं कि पाँचवीं अनुसूची और आदिवासी स्वशासन को मज़बूत करना ज़रूरी है, तो इस लेख को ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुँचाएँ।
👉 साथ ही पढ़ें: Article 21 और आदिवासी जीवन: जीने का अधिकार
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