Tribal Land Rights and Constitution — आदिवासी भूमि अधिकार और संघर्ष
प्रस्तावना
भारत में आदिवासी समुदायों की भूमि और संसाधनों का अधिकार सिर्फ सामाजिक न्याय नहीं, बल्कि संवैधानिक प्रतिबद्धता भी है। PESA कानून (“Panchayats (Extension to Scheduled Areas) Act, 1996”) ने अदिवासियों को उनके पारंपरिक क्षेत्र और सामाजिक संरचना में स्वशासन का अधिकार देने का मार्ग प्रशस्त किया है। इसकी विवेचना और प्रभाव को समझने के लिए देखिए हमारी ब्लॉग
इस ब्लॉग पोस्ट में हम "Tribal Land Rights and Constitution — आदिवासी भूमि अधिकार और संघर्ष" शीर्षक के अंतर्गत निम्नलिखित विषयों पर चर्चा करेंगे:
- संविधान में आदिवासियों की भूमि अधिकार की स्थापना
- PESA कानून की भूमिका और सीमाएँ
- वास्तविक संघर्ष, न्याय और आज की चुनौतियाँ (विशेषकर झारखंड जैसे राज्यों में)
- ग्लोबली मानव-केंद्रित दृष्टिकोण से आदिवासी भूमि अधिकार की वैश्विक प्रासंगिकता
1. संविधान और Scheduled Areas की संकल्पना
1.1 Scheduled Areas और Fifth Schedule
भारतीय संविधान की Article 244 और Fifth Schedule के तहत विशेष रूप से नामित क्षेत्रों—जिन्हें Scheduled Areas कहा जाता है—में आदिवासी आबादी का प्रबल वास होता है।
1.2 सामाजिक व संवैधानिक आधार
इन क्षेत्रों को अलग प्रावधानों के तहत लाने का मुख्य उद्देश्य था आदिवासी समुदायों को भूमि, संसाधन और निर्णय लेने में अधिकार सुनिश्चित करना और उन्हें विकास की प्रक्रियाओं में भागीदार बनाना।
2. PESA कानून का उद्देश्य और प्रावधान
2.1 PESA Act का अवतरण
PESA कानून, जो 24 दिसंबर 1996 को पारित हुआ, ने संविधान के Part IX को Scheduled Areas तक विस्तारित किया—विशेष संशोधनों के साथ।
2.2 Gram Sabha को स्वशासन
इस कानून ने Gram Sabha (ग्राम सभा) को स्थानीय स्वशासन का एक महत्वपूर्ण अंग बनाया, जहाँ minor forest produce, भूमि, जल, minor minerals आदि पर निर्णय लेने का अधिकार उसका है।
2.3 भूमि और संसाधनों पर नियंत्रण
Scheduled Areas में किसी भी भूमि का अधिग्रहण या संसाधनों का दोहन Gram Sabha की पूर्व सहमति के बिना नहीं हो सकता—एक सशक्त और संवैधानिक अधिकार।
2.4 उपलब्धियाँ
- पारंपरिक संस्थाओं को कानूनी मान्यता
- विकास प्रक्रियाओं में आदिवासियों की भागीदारी
- प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण
- भ्रष्टाचार और शोषण की रोकथाम
2.5 सीमाएँ
- Gram Sabha की सहमति को अक्सर औपचारिक माना जाता है
- कई राज्यों में PESA Rules अब तक नहीं बने
- प्रशिक्षण और संसाधनों की कमी
3. आज की चुनौतियाँ और संघर्ष — झारखंड की पृष्ठभूमि
3.1 स्थानीय आंदोलन
झारखंड में आदिवासी समुदाय लगातार PESA कानून के प्रभावी कार्यान्वयन की मांग कर रहे हैं। हाल के वर्षों में कई बार राजभवन तक मार्च करके नियमावली की घोषणा और Gram Sabha को अधिकार देने की मांग की गई।
3.2 सरकार पर आरोप
पूर्व मुख्यमंत्री रघुबर दास ने राज्य सरकार को दोषी ठहराया कि PESA को लागू न करके ₹1,400 करोड़ तक के केंद्र सरकार के फंड खो गए।
3.3 ड्राफ्ट गाइडलाइन्स
2025 में भी PESA के लिए draft guidelines आए, लेकिन आदिवासी नेताओं ने कहा कि बार-बार के ड्राफ्ट में Gram Sabha की शक्ति कमजोर हो रही है।
4. ग्लोबली मानव-टच: संघर्ष और संरक्षण
4.1 वैश्विक आदिवासी अधिकार
विश्व स्तर पर कई देशों में आदिवासी समुदायों को उनके पारंपरिक भूमि अधिकार और स्वशासन देने की कोशिश की जा रही है।
4.2 भारत की भूमिका
PESA और FRA (Forest Rights Act, 2006) भारत की ओर से वैश्विक आदिवासी न्याय में महत्वपूर्ण योगदान हैं।
4.3 मानव-केंद्रित दृष्टिकोण
यह केवल कानूनी अधिकार नहीं, बल्कि लोगों की आत्म-सम्मान, संस्कृति और प्रकृति के साथ जुड़ाव का मामला है।
5. निष्कर्ष और Call to Action
- संविधान और PESA दोनों ने आदिवासियों को संवैधानिक और प्राकृतिक अधिकार दिया है।
- कानून मौजूद है, लेकिन उसका क्रियान्वयन और Gram Sabha की सशक्तता अभी भी चुनौती है।
- झारखंड जैसे राज्यों में आंदोलन वैश्विक आदिवासी न्याय के संदर्भ में महत्वपूर्ण उदाहरण हैं।
👉 Call to Action:
- अगर आप समाजसेवी, छात्र, या नीति निर्माता हैं—तो Gram Sabha की भागीदारी और अधिकारों की रक्षा के लिए जागरूकता और संवाद शुरू करें।
- इस ब्लॉग को शेयर करें ताकि ज्यादा लोग जान सकें और आवाज़ उठाएँ।
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