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Government Sports Schemes for Adivasi Youth: Reality vs Claim (सरकारी खेल योजनाएँ और आदिवासी युवा: दावा बनाम ज़मीनी हकीकत)

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आदिवासी समाज: "सांस्कृतिक परंपराएं बनाम रूढ़िवादी प्रथाएं"

🌿 आदिवासी समाज: सांस्कृतिक परंपराएं बनाम रूढ़िवादी प्रथाएं लेखक : Sunil Kisku 🔗 Kisku87.blogpost.com ✨  आदिवासी संस्कृति की पहचान और चुनौतियां आदिवासी समाज भारत की सबसे प्राचीन और प्रकृति से जुड़ी सभ्यताओं में से एक है। इनकी संस्कृति, परंपराएं, रीति-रिवाज और जीवनशैली सदियों से जंगल, नदी और पर्वतों से गहरे जुड़े हैं। लेकिन आज जब आधुनिकता की लहर हर कोने में फैल रही है, आदिवासी समाज की सांस्कृतिक परंपराएं और रूढ़िवादी प्रथाएं के बीच संतुलन बनाए रखना एक बड़ी चुनौती बन गई है। 🌱 सांस्कृतिक परंपराएं – आदिवासी समाज की आत्मा 🔸 लोकगीत, नृत्य और त्योहार सरहुल , करम , मागे पर्व , और जनी शिकार जैसे त्योहार केवल पूजा नहीं बल्कि प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व का जश्न हैं। नृत्य और लोकगीत आदिवासी भावनाओं, संघर्षों और प्रेम को अभिव्यक्त करने का माध्यम हैं। हर पर्व, हर गीत में समाज के सामूहिक जीवन और प्रकृति के प्रति सम्मान का संदेश छिपा होता है। 🔸  पारंपरिक ज्ञान और जीवनशैली पारंपरिक औषधि, खेती के जैविक तरीके और जंगलों से जुड़ी जीवनशैली आज भी टि...

"आदिवासी कौन है"

आदिवासी इस देश के मालिक हैं: ऐतिहासिक हक और आज की चुनौतियाँ आदिवासी कौन हैं? – भारत के असली मालिक भारत की धरती पर सबसे पहले कदम रखने वाले लोग आदिवासी समुदाय से ही आते हैं। ये वह समाज है जिसने हजारों वर्षों से जल, जंगल और जमीन के साथ सामंजस्य बनाकर जीवन जिया। ये न केवल प्रकृति के संरक्षक रहे हैं, बल्कि भारत की सबसे प्राचीन सभ्यता के वाहक भी हैं। भारत के संविधान में आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribes) कहा गया है, लेकिन उनकी पहचान केवल "आरक्षण" तक सीमित नहीं है। वे भारत के मूलनिवासी हैं — इस देश के पहले मालिक। “आदिवासी इस देश के मालिक हैं” – यह वाक्य क्यों ऐतिहासिक है? ब्रिटिश उपनिवेशवाद और भूमि से बेदखली अंग्रेजों ने जब भारत पर कब्जा किया, तो सबसे पहले आदिवासी इलाकों को निशाना बनाया। जंगलों को राजस्व का स्रोत मानते हुए वन कानून बनाए गए, जिससे आदिवासी समुदाय अपनी ही जमीन से बेदखल कर दिए गए । लेकिन आदिवासियों ने कभी हार नहीं मानी — संथाल विद्रोह, मुंडा विद्रोह (उलगुलान), भील आंदोलन, कोल विद्रोह जैसे सैकड़ों आंदोलन हुए। आज़ादी के बाद भी नहीं...

"झारखंडी कला संस्कृति और परम्परा जीवनशैली

झारखंड की जनजातीय संस्कृति, नृत्य, परिधान और पारंपरिक त्योहारों की जानकारी  जानिए कैसे संथाली नृत्य, मांदर की धुन और सरहुल जैसे त्योहार इस संस्कृति को जीवंत रखते हैं। झारखंडी आदिवासी कला और संस्कृति: पहचान, परंपरा और परिवर्तन झारखंडी आदिवासी कला संस्कृति , झारखंड आदिवासी नृत्य , आदिवासी परंपरा , Jharkhand Tribal Culture  झारखंड का सांस्कृतिक वैभव: एक परिचय झारखंड सिर्फ खनिज संसाधनों के लिए नहीं, बल्कि अपनी समृद्ध आदिवासी संस्कृति और कला के लिए भी प्रसिद्ध है। यहाँ के आदिवासी समुदाय जैसे संथाल, मुंडा, हो, बिरहोर, उरांव , और खड़िया न केवल प्रकृति से जुड़े हैं, बल्कि उनके गीत, नृत्य, चित्रकला, वेशभूषा और त्यौहार भी इसी जुड़ाव को दर्शाते हैं। आदिवासी नृत्य और संगीत: आत्मा की अभिव्यक्ति  संथाली नृत्य संथाली महिलाएं पारंपरिक लाल-हरी बॉर्डर वाली साड़ी पहनकर सिर पर कलश और पत्तियाँ रखकर सामूहिक नृत्य करती हैं। पुरुष ढोल (मंदार) बजाकर लय प्रदान करते हैं। यह नृत्य सरहुल , सोहराय , और बाहा पर्व पर किया जाता है। संथाल , नृत्य , झारखंडी जनजातीय नृत्य ढोल, ...

"जल जंगल जमीन और आदिवासी संघर्ष "

https://kisku87.blogspot.com/p/privacy-policy.html  जल जंगल जमीन: आदिवासी जीवन और अधिकार की गहराई जानिए जल, जंगल और ज़मीन का आदिवासी जीवन में क्या महत्व है, किस तरह उनके अधिकार खतरे में हैं और वे अपने संसाधनों की रक्षा के लिए कैसे संघर्ष कर रहे हैं। 🌿 जल, जंगल और ज़मीन: आदिवासी जीवन, अस्तित्व और संघर्ष की कहानी जल जंगल जमीन जल जंगल जमीन का महत्व, जल जंगल जमीन और आदिवासी, जल जंगल जमीन पर अधिकार, प्राकृतिक संसाधन और अधिकार 🔍 भूमिका: क्या है जल, जंगल और ज़मीन? जल, जंगल और ज़मीन सिर्फ प्राकृतिक संसाधन नहीं हैं — ये आदिवासी जीवन की आत्मा हैं। झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, मध्यप्रदेश और पूर्वोत्तर राज्यों में रहने वाले लाखों आदिवासी समुदायों का संस्कृतिक, आर्थिक और सामाजिक जीवन इन्हीं संसाधनों पर आधारित है। 🌱 जल, जंगल और ज़मीन का आदिवासी जीवन में महत्व 1. 💧 जल: जीवन की धारा ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में नदियाँ, झरने और तालाब ही पीने के पानी , खेती , और मछली पालन का मुख्य स्रोत हैं। जल का उपयोग न केवल दैनिक जीवन में बल्कि त्योहारों और सांस्कृतिक अनुष्ठानो...

"आदिवासी: जीने का अधिकार "

https://kisku87.blogspot.com/p/privacy-policy.html आदिवासी: जीने का अधिकार | Adivasi Jine Ka Adhikar ✊ भूमिका: क्यों जरूरी है आदिवासियों के जीने के अधिकार की बात करना? भारत के मूल निवासी आदिवासी समाज आज भी अपने जल, जंगल और जमीन से जुड़े जीवन को जीने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। जबकि भारतीय संविधान और कई कानून उन्हें जीने का मौलिक अधिकार (Right to Life) और सांस्कृतिक पहचान की रक्षा का वादा करता है, लेकिन जमीनी हकीकत इसके विपरीत है। 🏹  आदिवासी अधिकार क्या हैं? आदिवासी अधिकार, संविधान में आदिवासी अधिकार) भारतीय संविधान में आदिवासियों को मिले अधिकार अनुच्छेद 21 : हर नागरिक को जीने का अधिकार पंचायत (अनुसूचित क्षेत्र) अधिनियम 1996 (PESA) : ग्राम सभा को अधिकार अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परंपरागत वनवासी (वन अधिकार) अधिनियम 2006 (FRA) : जंगल पर अधिकार अनुच्छेद 244 : पांचवीं और छठीं अनुसूची के तहत स्वशासन का अधिकार 🌾  पारंपरिक जीवनशैली की रक्षा का अधिकार खेती, वनोपज, पशुपालन आदि पर निर्भर जीवन धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं का पालन अपने जल, जंगल और जमीन...

"आदिवासियों की शोषण"

https://kisku87.blogspot.com/p/privacy-policy.html "माओवादी के नाम पर आदिवासियों का शोषण: जल-जंगल-जमीन पर कब्ज़ा और कॉर्पोरेट हित" ✊ माओवादी के नाम पर आदिवासियों का शोषण: जल-जंगल-जमीन की लूट और कॉर्पोरेट गठजोड़ 🔍 परिचय छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और ओडिशा जैसे खनिज-समृद्ध राज्यों में आदिवासी समुदायों को लंबे समय से उनके जल, जंगल और ज़मीन (JJJ) से बेदखल किया जा रहा है। सरकार और कॉर्पोरेट कंपनियों के बीच का गठजोड़ आज एक नये रूप में सामने आया है – माओवादी खतरे के नाम पर सुरक्षा बलों की तैनाती , गाँवों का खाली कराना और फिर अडानी जैसे औद्योगिक समूहों को खनन लीज़ देना । यह एक रणनीति है: पहले माओवादी बताकर डर फैलाओ, फिर ज़मीन खाली कराओ, और अंत में खनन या उद्योग के लिए जमीन कॉर्पोरेट को सौंप दो। 🏹 कैसे हो रहा है आदिवासियों का शोषण? 1. माओवादी होने का लेबल कई गांवों को नक्सल प्रभावित क्षेत्र घोषित किया जाता है, जबकि वहां शांति और आत्मनिर्भर जीवन था। सुरक्षा बलों के नाम पर ग्राम रक्षा समितियाँ या अर्धसैनिक बल भेजे जाते हैं। बिना किसी ठोस सबूत के युवाओं ...