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Government Sports Schemes for Adivasi Youth: Reality vs Claim (सरकारी खेल योजनाएँ और आदिवासी युवा: दावा बनाम ज़मीनी हकीकत)

अधिकर:FRA अधिकारों को जानें

Adhikar: FRA अधिकारों को जानें (लेखक: Sunil Kisku | संगठन: Adiwasiawaz) भारत में जंगलों पर आदिवासियों का पारंपरिक संबंध रहा है। पीढ़ियों से आदिवासी समुदाय जंगल के साथ जीते रहे हैं — वहीं से भोजन, ईंधन, दवा, और सम्मान मिलता रहा है। लेकिन लंबे समय तक इन समुदायों को उनके पारंपरिक अधिकार नहीं दिए गए। इसी पृष्ठभूमि में Forest Rights Act, 2006 (FRA) लाया गया ताकि वन क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासियों और अन्य पारंपरिक वनवासी समुदायों को उनके जमीन और जंगल पर अधिकार दिए जा सकें। FRA क्या है और क्यों ज़रूरी है? Forest Rights Act 2006, जिसे हिंदी में 'वन अधिकार अधिनियम' कहा जाता है, भारत सरकार द्वारा बनाया गया एक ऐतिहासिक कानून है। यह कानून दो प्रमुख समुदायों — अनुसूचित जनजातियों (Scheduled Tribes) और अन्य पारंपरिक वनवासी (OTFDs) — को मान्यता देता है कि वे जंगल में पीढ़ियों से रहते और उसे उपयोग करते आए हैं। इससे पहले तक इन्हें 'अवैध कब्जाधारी' समझा जाता था, लेकिन FRA ने इनकी संवैधानिक पहचान को स्वीकारा और अधिकार दिया। FRA के तहत दो मुख्य अधिकार दिए जाते हैं: व्यक्तिग...

आदिवासी और अपने अस्तित्व की पहचान का संघर्ष

🌿 आदिवासी और अपने अस्तित्व की पहचान का संघर्ष Adivasis and the Struggle for Identity & Existence भारत के आदिवासी समुदाय केवल जनसंख्या का हिस्सा नहीं हैं, वे एक संस्कृति, एक परंपरा और एक आत्मा हैं जो जंगल, ज़मीन और भाषा से गहराई से जुड़ी है। Today, these communities are fighting not just for land, but for their very identity and existence . आदिवासी कौन हैं? | Who Are Adivasis? Adivasi शब्द का अर्थ है — "सबसे पहले रहने वाले लोग" । They are the indigenous people of India, with unique languages, clothing, art, music, and governance systems. लेकिन आज, उन्हीं लोगों को अपने अस्तित्व को साबित करने की ज़रूरत पड़ रही है — “हम कौन हैं, ये हम नहीं बता पा रहे – बल्कि हमें बताया जा रहा है।” पहचान पर संकट | The Crisis of Identity ज़मीन छिन गई, तो संस्कृति भी बिखर गई जब आदिवासी समुदायों को उनकी ज़मीन से विस्थापित किया गया, तो उनके साथ उनकी बोली, उनके रीति-रिवाज़, और उनका सामाजिक ढांचा भी टूट गया। Land acquisition has not only uprooted families — ...

झारखंड में भूमि अधिग्रहण और आदिवासी अधिकार: संघर्ष और समाधान

झारखंड में भूमि अधिग्रहण और आदिवासी अधिकार: संघर्ष और समाधान भूमि अधिग्रहण: विकास या विनाश? झारखंड एक खनिज संपन्न राज्य है, लेकिन यहां आदिवासी समुदायों की जमीनें औद्योगिक परियोजनाओं, सड़कों, रेलवे और खनन के लिए जबरन ली जाती रही हैं। इससे न केवल उनका विस्थापन होता है बल्कि उनकी संस्कृति, पहचान और आजीविका पर भी गहरा असर पड़ता है। कौन से कानून आदिवासियों को अधिकार देते हैं? संविधान की 5वीं अनुसूची: अनुसूचित क्षेत्रों में आदिवासियों के संरक्षण की बात करती है। PESA Act 1996: ग्रामसभा की अनुमति के बिना भूमि अधिग्रहण अवैध है। Forest Rights Act (FRA) 2006: जंगलों पर व्यक्तिगत और सामूहिक अधिकार देता है। Land Acquisition Act 2013 (LAAR): अधिग्रहण के पहले ग्रामसभा की मंजूरी, पुनर्वास और मुआवजा अनिवार्य बनाता है। ग्रामसभा की भूमिका: क्या वो सच में सशक्त है? कई जगहों पर ग्रामसभा को नजरअंदाज किया जाता है या सिर्फ दिखावे के लिए बुलाया जाता है। जबकि कानून के अनुसार, जमीन अधिग्रहण से पहले ग्रामसभा की स्पष्ट सहमति ज़रूरी है। स्थानीय संघर्...

"जंगलों की कटाई और विस्थापन: विकास की कीमत पर विनाश?

जंगलों की कटाई और विस्थापन: विकास की कीमत पर विनाश? लेखक: Adiwasiawaz  | तारीख: 29 जुलाई 2025 परिचय भारत के आदिवासी क्षेत्र लंबे समय से प्राकृतिक संसाधनों, विशेषकर जंगलों, पर निर्भर हैं। लेकिन बीते कुछ दशकों में जिस तरह से जंगलों की अंधाधुंध कटाई और औद्योगिक परियोजनाओं के नाम पर विस्थापन हुआ है, वह केवल पर्यावरणीय संकट नहीं बल्कि मानवीय अधिकारों का उल्लंघन भी है। जंगलों की कटाई: कारण और आंकड़े जंगलों की कटाई का प्रमुख कारण है - खनन परियोजनाएं, जल विद्युत परियोजनाएं, रेलवे, सड़क और उद्योगों का विस्तार। FAO (2020) की रिपोर्ट के अनुसार भारत हर वर्ष लगभग 1.5 मिलियन हेक्टेयर जंगल खोता है। इसमें से अधिकतर क्षेत्र आदिवासी जिलों में आता है। प्रमुख कारण: खनिज दोहन के लिए भूमि अधिग्रहण बिना ग्रामसभा अनुमति के वन क्षेत्र का हस्तांतरण सरकारी योजनाओं में वन अधिकार अधिनियम की अनदेखी वन विभाग की नीतियाँ जो समुदायों को बाहर करती हैं विस्थापन: एक त्रासदी जब जंगल कटते हैं, तो वहां रहने वाले आदिवासियों को उनकी भूमि से बेदखल कर दिया जाता है। य...

"PESA कानून: प्रभाव और अमल"

PESA कानून: प्रभाव और अमल लेखक: AdiwasiAwaz  तारीख: 29 जुलाई 2025 🟢 PESA कानून क्या है? PESA (Panchayats Extension to Scheduled Areas Act) कानून भारत सरकार द्वारा वर्ष 1996 में पारित एक ऐतिहासिक अधिनियम है, जो संविधान की 73वीं संशोधन अधिनियम के तहत अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायतों की शक्तियों और कार्यक्षेत्र को विस्तारित करता है। इसका मुख्य उद्देश्य है कि आदिवासी समुदायों को उनके पारंपरिक स्वशासन की व्यवस्था के अनुसार अधिकार मिले। PESA कानून यह मानता है कि आदिवासी समाज की संस्कृति, परंपरा और जीवनशैली विशेष होती है। इस कारण उन्हें वही शासन प्रणाली दी जानी चाहिए जो उनके सामाजिक ढांचे से मेल खाती हो। 🟢 PESA कानून की पृष्ठभूमि भारत के संविधान में 5वीं अनुसूची के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों में आदिवासी समुदायों की सुरक्षा और स्वशासन की बात की गई थी, परंतु 73वें संविधान संशोधन (1992) के दौरान ये क्षेत्र पंचायत व्यवस्था से बाहर रखे गए। इसकी पूर्ति के लिए 1996 में PESA अधिनियम लाया गया। यह कानून नौ राज्यों — झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, मध्य प्रदेश, महाराष्...

"पारंपरिक आदिवासी नृत्य और उनके सामाजिक महत्व"

🛒 Amazon से घर बैठे ऑर्डर कीजिए:🔗 [https://amzn.to/4fceJmN पारंपरिक आदिवासी नृत्य और उनके सामाजिक महत्व Adiwasiawaz प्रस्तुत करता है: एक झलक आदिवासी सांस्कृतिक जीवन में रचे-बसे नृत्यों की, जो केवल कला नहीं बल्कि सामाजिक संवाद और पहचान का हिस्सा हैं। आदिवासी नृत्य: संस्कृति का जीवंत रूप भारत के आदिवासी समुदायों में नृत्य एक गहरी सामाजिक और आध्यात्मिक परंपरा का हिस्सा है। चाहे वह झारखंड का 'पाइका नृत्य' हो या छत्तीसगढ़ का 'सुआ नृत्य' , हर नृत्य प्रकृति, ऋतु, त्योहार, फसल और सामूहिकता से जुड़ा होता है। नृत्य का सामाजिक महत्व एकता का प्रतीक: सामूहिक नृत्य जैसे 'करमा' और 'सरहुल' जनजातीय समाज को एकसूत्र में बांधते हैं। सांस्कृतिक पहचान: हर जनजाति का अपना विशिष्ट नृत्य होता है, जिससे उनकी अलग पहचान बनी रहती है। उत्सव और अनुष्ठान: विवाह, फसल उत्सव, पर्व या देवी-देवताओं की पूजा — हर अवसर पर नृत्य आवश्यक होता है। समाज में संवाद: लोकगीतों और नृत्य के माध्यम से सामाजिक मुद्दों, प्रेम, संघर्ष और एकता को ...

"आदिवासी भाषा और उनकी लुप्त होती पहचान"

आदिवासी भाषा और उनकी लुप्त होती पहचान लेखक: Adiwasiawaz  परिचय: भाषा ही असली पहचान आदिवासी समाज की असली ताकत उसकी भाषा , संस्कृति और लोकज्ञान में बसती है। हर आदिवासी भाषा अपने भीतर एक इतिहास, एक दर्शन और प्रकृति से जुड़ा जीवनशैली समेटे हुए होती है। लेकिन आज के तेज़ी से बदलते दौर में ये भाषाएं और इनके बोलने वाले दोनों गायब होते जा रहे हैं । भारत में कितनी आदिवासी भाषाएं हैं? भारत में करीब 700 से अधिक जनजातियां हैं और लगभग 200 से ज़्यादा आदिवासी भाषाएं बोली जाती हैं। कुछ प्रमुख भाषाएं हैं: संथाली, मुंडारी, हो, कुड़ुख, गोंडी, खड़िया, भीली आदि। संथाली: पहली अनुसूचित जनजातीय भाषा जो संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल हुई यह एक गौरव की बात है लेकिन बाकी भाषाएं आज भी राजकीय मान्यता लुप्त होने के कारण शिक्षा और प्रशासन में हिंदी/अंग्रेज़ी का बोलबाला: आदिवासी बच्चे स्कूल में अपनी मातृभाषा में नहीं पढ़ पाते। शहरीकरण और पलायन: गांव छोड़कर शहरों में बसने से नई पीढ़ी अपनी भाषा भूल रही है। भाषा का शर्म के रूप में देखना: बहुत से युवा अपनी भाषा बोलने में हिचकिचाते है...

ग्रामसभा: सशक्तिकरण या केवल औपचारिकता?

ग्रामसभा: सशक्तिकरण या केवल औपचारिकता? लेखक: Adiwasiawaz  परिचय: ग्रामसभा की शक्ति और सच्चाई ग्रामसभा का विचार भारतीय लोकतंत्र में सबसे शक्तिशाली अवधारणाओं में से एक है, खासकर आदिवासी क्षेत्रों में। संविधान के अनुच्छेद 243 और पंचायती राज व्यवस्था के अंतर्गत ग्रामसभा को स्थानीय स्वशासन का आधार माना गया है। साथ ही, PESA (पेसा) अधिनियम 1996 और वन अधिकार अधिनियम 2006 में ग्रामसभा को निर्णायक शक्ति दी गई है। लेकिन जमीनी हकीकत इससे कितनी मेल खाती है? क्या ग्रामसभा सच में सशक्त है या यह केवल एक औपचारिकता बनकर रह गई है? ग्रामसभा: कानूनी अधिकार क्या कहते हैं? 1. पंचायती राज और PESA कानून PESA कानून के तहत अनुसूचित क्षेत्रों की ग्रामसभाओं को अधिकार दिया गया है कि वे: भूमि अधिग्रहण पर निर्णय लें खनन परियोजनाओं को स्वीकृति दें या रोकें पारंपरिक ज्ञान और संस्कृति की रक्षा करें प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग तय करें 2. वन अधिकार अधिनियम 2006 इस कानून के तहत ग्रामसभा को वनाधिकार मान्यता और CFR (Community Forest Rights) देने की शक्ति प्राप्त है। लेकिन कई बार य...

"खनन और विकास: भारत में आर्थिक संभावनाएं और चुनौतियां

खनन और विकास : आदिवासी हित या नुकसान? लेखक: Adiwasiawaz  परिचय: विकास का अर्थ किसके लिए? खनन को अक्सर आर्थिक विकास और औद्योगिक प्रगति का आधार माना जाता है। लेकिन जब यह विकास आदिवासियों की ज़मीन, जंगल और आजीविका छीनकर होता है, तब सवाल उठता है: यह किसका विकास है और किस कीमत पर? खनन: आदिवासियों के लिए अवसर या संकट? खनिज संपदा से भरपूर झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा जैसे राज्यों में खनन परियोजनाओं के लिए सबसे ज़्यादा जमीन आदिवासी समुदाय की ली जाती है। मुख्य नुकसान: विस्थापन: गांव उजड़ते हैं, सामाजिक ढांचा टूटता है। रोज़गार का झांसा: स्थानीय आदिवासी बेरोज़गार ही रहते हैं जबकि बाहर से लोग नौकरी पाते हैं। पर्यावरणीय संकट: जंगल कटते हैं, जल स्रोत सूखते हैं और प्रदूषण बढ़ता है। संस्कृति पर प्रहार: सांस्कृतिक विरासत और पारंपरिक जीवनशैली खत्म होने लगती है। कुछ उदाहरण: बोकारो स्टील प्लांट: हजारों आदिवासी विस्थापित हुए, आज भी उनका पुनर्वास अधूरा है। लातेहार और गढ़वा: कई कोल माइंस में स्थानीय युवाओं को स्थायी रोज़गार नहीं मिला। क्या कहते हैं कानून? Forest Rights...

"आदिवासी लोककला और सांस्कृतिक पहचान"

  आदिवासी लोककला और सांस्कृतिक पहचान: मिट्टी से जुड़ी आत्मा की आवाज़  आदिवासी लोककला, सांस्कृतिक पहचान, आदिवासी संस्कृति, झारखंड लोककला, पारंपरिक कला, आदिवासी धरोहर आदिवासी संस्कृति — केवल परंपरा नहीं, जीवनशैली है हम आदिवासी समाज के लिए संस्कृति सिर्फ नाच-गाना या त्योहार मनाना नहीं है, बल्कि यह जीने का तरीका है। हमारी बोली, पहनावा, खाना, खेती का तरीका, पेड़-पौधों से जुड़ाव — सब कुछ हमारी संस्कृति का हिस्सा है। झारखंड, ओड़िशा, छत्तीसगढ़, बंगाल और मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में बसे आदिवासी समुदायों की लोककला आज भी जीवित है — वो मिट्टी की दीवारों पर बने चित्रों में, त्योहारों के नृत्य में, और बांस से बनी टोकरियों में सांस लेती है। आदिवासी लोककला — मिट्टी, रंग और रीत का संगम सोहराय और कोहबर पेंटिंग — दीवारों पर बोलती कहानियां झारखंड के संथाल, मुंडा, हो, उरांव समुदाय की औरतें अपने घर की दीवारों पर सोहराय और कोहबर जैसे पारंपरिक चित्र बनाती हैं। ये सिर्फ सजावट नहीं, बल्कि आस्था और धरोहर का प्रतीक होते हैं। गाय,...

"स्वशासन व्यवस्था"

https://amzn.to/4mm7Y4d Amazon से घर बैठे ऑर्डर करें आदिवासी: एक स्वशासन व्यवस्था और कानूनी अधिकार आदिवासी अधिकार, स्वशासन व्यवस्था, पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम 1996, PESA Act, Fifth Schedule, आदिवासी स्वशासन, ग्राम सभा का अधिकार, जनजातीय संविधानिक अधिकार भूमिका: आदिवासी समाज का स्वाभाविक शासन आदिवासी समाज सदियों से जंगल, जमीन और जल के साथ आत्मनिर्भर जीवन जीता रहा है। उनका शासन न तो बाहरी ताकतों पर निर्भर रहा है और न ही किसी एकतंत्रीय प्रणाली पर। वे अपने समुदाय के नियमों से चलते हैं, जहाँ निर्णय ग्राम सभा के माध्यम से लिए जाते हैं। आदिवासी स्वशासन क्या है? पारंपरिक ग्राम सभा और नेतृत्व प्रणाली आदिवासी समाज में ग्राम प्रमुख, मांझी, परगनैत, मांझी-हादाम , जैसे पद स्वशासन के अंग हैं। ये पद वंशानुगत न होकर सामूहिक सहमति से तय होते हैं। निर्णय लेने की प्रक्रिया हर महत्वपूर्ण निर्णय – चाहे वह भूमि से जुड़ा हो, विवाह से या सामाजिक न्याय से – ग्राम सभा के सामने रखा जाता है। यह एक लोकतांत्रिक, पारदर्शी और सहभागितापूर्ण प्रक्रिया है। कानू...

कोनार डैम

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"बरखा और आदिवासी खेती"

https://www.amazon.in/Tribal-Studies-Indi   🌧️ बरखा और आदिवासी खेती: प्रकृति के संग जीने की परंपरा बरखा और आदिवासी खेती: जानिए कैसे वर्षा आधारित पारंपरिक खेती आदिवासी समाज का आधार है। जैविक खेती, देसी बीज, और सामूहिक कृषि संस्कृति पर आधारित एक अनोखी जीवनशैली।" 🌱  वर्षा आधारित खेती: आदिवासी जीवनशैली की रीढ़ भारत के आदिवासी समुदायों के लिए खेती केवल आजीविका नहीं, बल्कि संस्कृति और अस्तित्व का प्रतीक है। खासकर झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर राज्यों में आदिवासी खेती बरसात पर आधारित होती है। ☔  पहली बरसात और खेत की तैयारी बरसात की पहली फुहार जब धरती को छूती है, तो आदिवासी किसान समझ जाते हैं कि अब हल, बैल और बीज तैयार करने का समय आ गया है। इस समय: धान की नर्सरी तैयार की जाती है। बीजों को देसी तरीके से उपचारित किया जाता है, जैसे राख या नीम पत्ती का प्रयोग। महिलाएं और पुरुष मिलकर सामूहिक रूप से खेतों की साफ-सफाई करते हैं। 🌾  आदिवासी खेती के प्रमुख लक्षण 🌿 जैविक और पारंपरिक खे...

"शोषण मुक्त समाज की कल्पना"

https://amzn.to/3TY5ddi   🌿 शोषण मुक्त समाज की कल्पना और आदिवासी समाज की भूमिका "जहां हर हाथ को हक़ मिले, हर ज़मीन पर न्याय हो" आज जब हम एक समानता आधारित, न्यायपूर्ण और टिकाऊ विकास की बात करते हैं, तो सबसे महत्वपूर्ण सवाल उठता है — क्या वाकई हम एक शोषण मुक्त समाज की कल्पना कर सकते हैं? और अगर हाँ, तो वह कैसा होगा? यह सवाल सिर्फ सैद्धांतिक नहीं है, बल्कि हमारे सामाजिक ढांचे, आर्थिक नीतियों और सत्ता संरचनाओं से गहराई से जुड़ा हुआ है। इस संदर्भ में आदिवासी समाज की जीवनशैली, दर्शन और संघर्ष हमें एक वैकल्पिक दिशा दिखाते हैं, जो न केवल टिकाऊ है बल्कि वास्तव में शोषण-मुक्ति की राह पर ले जाने में सक्षम है। 🌱 आदिवासी जीवनदर्शन में पहले से है शोषण मुक्त समाज की झलक आदिवासी समाज सदियों से जंगल, पहाड़, नदी और ज़मीन के साथ सामंजस्यपूर्ण जीवन जीता आ रहा है। उनकी संस्कृति में न तो संपत्ति का निजी स्वामित्व है और न ही किसी एक व्यक्ति की सत्ता का वर्चस्व। ग्रामसभा के ज़रिए सामूहिक निर्णय, श्रम की बराबरी, महिलाओं की भागीदारी, और प्रकृति के साथ संतुलन — ये सभी आदिवासी जीव...

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Terms and Conditions Last updated: July 19, 2025 Please read these terms and conditions carefully before using Our Service. Interpretation and Definitions Interpretation The words of which the initial letter is capitalized have meanings defined under the following conditions. The following definitions shall have the same meaning regardless of whether they appear in singular or in plural. Definitions For the purposes of these Terms and Conditions: Affiliate means an entity that controls, is controlled by or is under common control with a party, where "control" means ownership of 50% or more of the shares, equity interest or other securities entitled to vote for election of directors or other managing authority. Country refers to: Jharkhand, India Company (referred to as either "the Company", "We", "Us" or "Our" in this Agreement) refers to Adiwasiawaz . Device means any device that can access the Service such as a...

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Privacy Policy Last updated: July 14, 2025 This Privacy Policy describes Our policies and procedures on the collection, use and disclosure of Your information when You use the Service and tells You about Your privacy rights and how the law protects You. We use Your Personal data to provide and improve the Service. By using the Service, You agree to the collection and use of information in accordance with this Privacy Policy. This Privacy Policy has been created with the help of the  Interpretation and Definitions Interpretation The words of which the initial letter is capitalized have meanings defined under the following conditions. The following definitions shall have the same meaning regardless of whether they appear in singular or in plural. Definitions For the purposes of this Privacy Policy: Account means a unique account created for You to access our Service or parts of our Service. Affiliate means an entity that controls, is controlled by or is under common c...

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